बिहार
बिहार के व्यंजन न केवल बिहार, बल्कि झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी खाए जाते हैं। इसमें भोजपुरी, मैथिली और मगही व्यंजन शामिल हैं। मुख्य रूप से सरसों के तेल का उपयोग और पंचफोरन का तड़का, जिसमें जीरा सौंफ, मेथी, सरसों, और कलोंजी या मँगरैल सहित वस्तुतः पाँच मसाले मिले होते हैं, बिहारी व्यंजनों की विशिष्ट विशेषता है। बिहारी भोजन में बहुत हद तक हल्का तलना (भूँजना) शामिल रहता है। भोजन में स्वाद और सुगंध लाने के लिए सरसों के तेल में लाल मिर्च का उपयोग करना इसकी एक अन्य विशेषता है।
बिहार का प्रमुख भोजन गेहूं और चावल है। अबुल फज़ल के आईन-ए-अकबरी में भी चावल का उल्लेख बिहार के मुख्य आहार के रूप में किया गया है। एक बिहारी भोजन में आमतौर पर दाल, भात (चावल), फुल्का (रोटी), तरकारी (सब्जी) और अचार शामिल रहते हैं। नीचे सूचीबद्ध कुछ प्रसिद्ध बिहारी व्यंजन हैं:
- लिट्टी चोखा:: लिट्टी आटे की एक गेंद की तरह होती जो गेहूं के आटे से बनी होती है। इसे सत्तू (चने का आटा) में मसाले के साथ मिला कर बनाए गए मिश्रण से भरा जाता है। इसे आटे की गेंद को गाय के गोबर के उपलों, लकड़ी या कोयले पर भूना जाता है और फिर घी से सेंका जाता है। लिट्टी को चोखे के साथ खाया जाता है जो कि बैंगन, आलू और टमाटर के मिश्रण में मसाले मिला कर बनाया जाता है।
- बिहारी कबाब:: मांस को पतले टुकड़ों में काट कर बहुत सारे मसालों के साथ मिलाया जाता है और फिर सींकचों में फँसा कर कोयले पर पकाया जाता है। पके हुए कबाब घी में सेंके जाते हैं।
- सत्तू पराठा: भुने हुए चने के आटे को पराठे में भरा जाता है और फिर घी में सेंका जाता है।
- पिट्ठा: पिसी हुई चने की दाल, चावल के आटे से बने छोटे आकार के पकौड़े मे भरी जाती है। इस पकौड़े को फिर भाप से पकाया जाता है और धनिया की चटनी के साथ परोसा जाता है।
- घुगनी:काले चने को रात भर भिगोया जाता है और प्याज़, लहसुन और गरम मसाले के साथ पकाया जाता है। इसे तले हुए चूड़े के साथ परोसा जाता है।
- चूड़ा: पीटा हुआ चावल जो या तो भूना हुआ या तला हुआ होता है। इसे घुगनी, दही, गुड़, मटर और प्याज की मसालेदार सब्ज़ी के साथ परोसा जाता है।
जहां तक मिठाइयों की बात है, तो बिहारी पाक शैली बालूशाही, खाजा, मोतीचूर के लड्डू, परवल की मिठाई, तिलकुट, फालूदा आदि के लिए जानी जाती है।
लिट्टी और चोखा:
लिट्टी और चोखा बिहार का एक लोकप्रिय व्यंजन है। झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और नेपाल में भी इसका सेवन किया जाता है। लिट्टी आटे की एक गेंद की तरह होती जो गेहूं के आटे से बनी होती है। इसे सत्तू (चने का आटा) में मसाले, प्याज़, अदरक, लहसुन, नींबू का रस, अजवाइन और जड़ी आदि मिला कर बनाए गए मिश्रण से भरा जाता है। कभी-कभी इसका स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें अचार भी मिलाया जाता है। पारंपरिक रूप से, इस आटे की गेंद को गाय के गोबर के उपलों, लकड़ी या कोयले पर भूना जाता था और फिर घी से सेंका जाता था। हालांकि, आज-कल लोग आसानी के लिए इसे तलना पसंद करते हैं।
लिट्टी को चोखे के साथ खाया जाता है जो कि बैंगन, आलू और टमाटर के मिश्रण में मसाले मिला कर बनाया जाता है। इसे आम तौर पर बनाई जाने वाली सब्ज़ी की तरह नहीं पकाया जाता है। सब्जियों को पहले आग पर भूना जाता है और फिर अच्छी तरह मसल कर बारीक कटे प्याज़ और मसालों के साथ मिलाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि लिट्टी मगध में उत्पन्न हुई, जो कि दक्षिणी बिहार में एक प्राचीन साम्राज्य था। यह उन सोलह महाजनपदों या राज्यों में से एक था जिनका अस्तित्व प्राचीन भारत में ६वीं से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में था। लंबे समय तक लिट्टी और चोखे को किसानों के साथ भी जोड़ा जाता था क्योंकि इसमें महंगी सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है और सत्तू में विशेष रूप से शीतलकारी गुण होते हैं जो उन्हें पूरे दिन सक्रिय रखते थे।
ऐसा कहा जाता है कि १८५७ के विद्रोह के दौरान, इस भोजन को प्राथमिकता दी जाती थी क्योंकि इसे कम से कम सामग्री के साथ आसानी से पकाया जा सकता था, इससे अच्छी तरह से पेट भरता था और यह तीन दिनों तक टिक सकता था। ऐसा कहा जाता कि तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने इसे अपना यात्रा के दौरान का भोजन बनाया था। मुग़लों के आने के बाद से इस व्यंजन में कुछ बदलाव हुए। लिट्टी को शोरबा (मांस का रसेदार सालन) और पाया (बकरी, भेड़, गाय के खुरों का मसालों और जड़ियों के साथ बना हुआ सालन) के साथ परोसा जाने लगा। समकालीन समय में, लिट्टी और चोखे ने वर्ग की सीमाओं को पार कर लिया है और अब यह बिहारी समाज के हर वर्ग द्वारा खाया जाता है।