कश्मीर
कश्मीरी व्यंजन प्राचीन काल से दो पाकविद्याओं के रूप में विकसित हुई है - कश्मीरी पंडित और कश्मीरी मुसलमान। दोनों के बीच बुनियादी अंतर यह था कि पंडित हींग और दही का और मुसलमान प्याज़ और लहसुन का उपयोग करते थे। पेशेवर कश्मीरी रसोइए, जिनको 'वाज़' कहा जाता है, उन अद्भुत रसोइयों के वंशज माने जाते हैं जो पंद्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में समरकंद और मध्य एशिया के अन्य हिस्सों से कश्मीर आये थे।
इसीलिए कश्मीरी भोजन या भोज 'वाज़वान' कहलाता है। 'वाज़' शब्द का अर्थ रसोइया होता है और मांस और अन्य व्यंजनों की दुकान को 'वान' कहा जाता है| एक प्रतीकात्मक वज़वान में छत्तीस भोजन-क्रम होते हैं, जिनमें पंद्रह से तीस व्यंजन अनेक प्रकार के मांस से बने होते हैं।
अधिकांश कश्मीरी व्यंजनों को 'वस्त वाज़ा' या 'मुख्य रसोइये' की देखरेख में पूरी रात पकाया जाता है। वाज़वान केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अधिक उपयुक्त रूप से कहा जाए तो यह एक समारोह है। 'त्रामी’ भोजन की एक पारंपरिक व्यवस्था है जिसमें खाना थाली में परोसा जाता है, जिसमें चावल से बने एक टीले को चार सीख़ कबाबों, मेथी कोरमा के चार टुकड़ों (मेथी के पत्तों से भरी मलाईदार तरकारी) और एक तबख माज़ (पसलियों से कटे हुए मटन के सपाट टुकड़े जिन्हें कुरकुरा होने तक तला जाता है) से बांटा जाता है। दही और चटनी को अलग से छोटे मिट्टी के बर्तनों में परोसा जाता है।
कश्मीरी व्यंजनों में कई मांसाहारी व्यंजन और निश्चित रूप से कुछ उत्तम शाकाहारी व्यंजन भी होते हैं| सामान्यतः कश्मीरी व्यंजन, जिनमें हल्दी और दही का पर्याप्त उपयोग किया जाता है, काफी गरिष्ठ और स्वाद में हल्के होते हैं। कश्मीरी व्यंजनों में शरीर को गर्मी प्रदान करने वाले मसाले जैसे लौंग, दालचीनी, इलायची, अदरक और सौंफ का भरपूर उपयोग किया जाता है, जबकि लहसुन और प्याज़ का अधिक उपयोग नहीं किया जाता है।
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कश्मीरी पारंपरिक रूप से चावल खाने वाला समुदाय रहा है लेकिन नाश्ते, दोपहर के भोजन और शाम की चाय में विभिन्न प्रकार की पारंपरिक रोटियाँ खाई जाती रही हैं| विभिन्न रोटियों में गिर्दा शामिल है (मध्यम आकार का गोलाकार पाव) जो तंदूर पर पकाया जाता है, मक्खन के साथ गर्म किया जाता है और यह बाहर से कुरकुरा और अंदर से सफेद और नरम होता है | रोटी बनाने वाला अपने हाथों से उसपर ठप्पा लगा देता है जिससे एक गड्ढे का आकर दिखाई पड़ता है | इसके अतिरिक्त, लवासा (पतली अखमीरी रोटी जो सालन और मांस के साथ खाई जा सकती है), घ्येव त्सोट (रोटी जो अधिकतर विशेष अवसरों से जुड़ी है क्योंकि इसमें हर परत में बड़ी मात्रा में घी होता है और यह बाहर से कुरकुरी होती है), बाकिरखानी (कई परतों के साथ बनी हुई कुरकुरी 'पफ पेस्ट्री' का कश्मीरी संस्करण) और कतलामा (सख़्त बिस्कुट जिसके ऊपर खसखस के दानो की परत होती है, इसका सेवन काहवा या शीर चाय - नमकीन गुलाबी चाय - के साथ किया जाता है) अन्य प्रकार की रोटियाँ होती हैं।.
कश्मीर में रोटियों को बंद तंदूर में पकाया जाता है। इस तरह के तंदूर शहर की हर दूसरी गली में मौजूद होते थे और इन्हें 'कानदुर' कहा जाता था। इन रोटियों को पकाने का चलन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है और वर्तमान समय में, दिल्ली जैसे शहरों में कश्मीरी प्रवासी परिवार हैं जो कानदुर चलाते हैं।
नदुर (कमल का तना) यखनी
यखनी एक दही आधारित शोरबा है जो कि एक हल्का व्यंजन है, और इसे मुख्य रूप से इलायची के बीज, तेजपत्ता और लौंग के साथ बघारा जाता है। इसका सालन कई तत्वों के साथ पकाया जा सकता है। यह मांसाहारीयों के लिए मांस या शाकाहारियों के लिए नदुर (कमल का तना), अल (लौकी) और होकसुन (सूखी लौकी) हो सकता है।
यह लगभग सभी कश्मीरी उत्सवों और रात्रिभोजों में अवश्य खाया जाता है और ज़्यादातर इसे मिट्टी के बर्तन या लेज में पकाया जाता है, और इसे उबले हुए चावल के साथ परोसा जाता है।
कमल के तने को ख़ुरचकर दो या तीन आड़े टुकड़ों में काटा जाता है। फिर इसे लगभग एक घंटे के लिए पानी में उबाला जाता है और सरसों के तेल, दही, दूध, हींग, दालचीनी, अदरक और इलायची पाउडर से बने एक गरिष्ठ शोरबा/यखनी में मिलाया जाता है। फिर इसे लगभग पंद्रह से बीस मिनट के लिए मध्यम आँच पर पकने के लिए रख दिया जाता है|