ओडिशा

ओडिशा भारत के पूर्वी तट पर स्थित है। बंगाल की खाड़ी के किनारे ४८५ किलोमीटर की तटीय रेखा से समृद्ध, ओडिशा के व्यंजनों में ऐसे कई तत्व शामिल हैं जो न जाने कितने महासागरों को पार करके यहाँ तक पहुँचे हैं। भोजन अक्सर कई सहायक खाद्यों के साथ परोसा जाता है, जिनमें 'बड़ी,' दाल या कद्दू से बने धूप में सुखाए गए लड्डू, जिन्हें परोसने से पहले ज़्यादा तेल में तला जाता है, 'खोट्टा,' जो कि मीठी और खट्टी चटनियाँ हैं और दो से तीन सब्जी से बने व्यंजन शामिल हो सकते हैं। तली हुई, उबली हुई या मसली हुई मछली इनके भोजन का एक महत्वपूर्ण अंग है।

पुरी में जगन्नाथ मंदिर में सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। 'दालमा' जैसे व्यंजन, जिसे एक-मद भोजन कहा जा सकता है क्योंकि इसमें दाल और सब्ज़ियाँ दोनों ही शामिल हैं, ‘घांटो,' जो कि सब्जियों का एक मिश्रण है, नारियल, सूखे मेवे के स्वाद वाले ‘पीठे,' जो कि मीठे या नमकीन पकौड़े जैसे होते हैं और ‘छेना पूड़ो,' जिन्हें ईश्वर के घर में कड़े नियमों के अनुसार बनाया जाता है। इन व्यंजनों ने ओडिशा के आम घरों में अपना स्थान बना लिया है।

छेना पूड़ो :

निर्विवादित रूप से इनमें से सबसे प्रिय ‘छेना पूड़ो' है जिसे संभवतः ‘जलाया हुआ पनीर’ कहा जा सकता है। सुदर्शन साहू नामक एक हलवाई और होटल व्यवसायी ने इसका आविष्कार २०वीं सदी में किया था। एक शाम श्री साहू से भूल से गर्म तंदूर में रात भर थोड़ा मीठा छेना (पनीर) छूट गया। ताप के कारण छेन  में मिला गुड़  जल कर भूरे रंग का हो गया, जिससे नरम पनीर में भुना हुआ स्वाद और कड़ी दानेदार बाहरी परत बन गई। परंपरागत रूप से, दूध को फाड़ कर मलमल के कपड़े में बांधकर छेना बनाया जाता है जिसे फिर चीनी, इलायची पाउडर और सूजी  मिलाकर नरम गूँधा जाता है। इसे साल वृक्ष या केले के पत्तों में लपेटा जाता है और ३-४ घंटे के लिए कोयले के चूल्हे में पकाया जाता है।

आज छेना पूड भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है और यह ओडिया लोगों की प्रिय मिठाई है। यह न केवल हर छोटे सड़क के किनारे स्टाल में बनाया गया है, बल्कि उड़ीसा राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ द्वारा राज्य भर में प्रशंसकों के लिए निर्मित किया गया है। ‘ओडिशा के रसगोला ’के लिए भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने के बाद, इस वर्ष, राज्य छेना पुडो के लिए समान अधिग्रहण करने के लिए याचिका दायर कर रहा है।

महाप्रसाद / महारदा / भोग / प्रसाद / कोठा भोग

यह सामान्यतया माना जाता है कि भगवान विष्णु रामेश्वरम में स्नान करते हैं, बद्रीनाथ में चिंतन करते हैं, द्वारका में विश्राम करते हैं और पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भोजन करते हैं। समय के साथ, पुरी के मंदिर परिसर ने भगवान और उनके भक्तों की भूख मिटाने के लिए मूलभूत सुविधाएँ विकसित कर ली हैं। भोगमंडप  मंदिर के पंचरथ (मंदिर परिसर की पाँच प्राथमिक संरचनाएँ) का हिस्सा है, जबकि बाहरी आँगन के दक्षिण पूर्व किनारे में रोसो घोरो (रसोई) में महासुअरा और सुअरा  कार्यरत हैं जो भगवान की सेवा में नियुक्त वरिष्ठ और कनिष्ठ रसोइये हैं। आनंद बाज़ार, ‘प्रसन्नता का बाज़ार,’ परिसर की उत्तर-पूर्वी दीवारों के किनारे स्थित है। यहाँ तीर्थयात्री और आगंतुक स्वयं भगवान द्वारा पवित्र किए गए सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ, अथवा महाप्रसाद  खरीद सकते हैं।

“सदा रस व्यंजन नाना यति
छप्पन भोग लगे दिनराती “
“छह गुना स्वाद के बहुरंगी व्यंजन
छप्पन भोगों को दिन-रात परोसा जाता है”

भगवान को कई प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं। आमतौर पर छप्पन खाद्य सामग्रियों (छप्पनभोग) को परोसा जाता है। छप्पनभोग पारंपरिक रूप से, भगवान इंद्र के क्रोध से ब्रज के लोगों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण द्वारा सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को उठाए रखने के पराक्रम से जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण ने इस सप्ताह के सभी दिनों के प्रत्येक प्रहर के आठों भोजनों को ग्रहण नहीं किया था। इस प्रकार ग्रहण न किए गए भोजनों की भरपाई करने के लिए भगवान कृष्ण को ५६ भोजन परोसे जाते हैं। मकर संक्रांति  जैसे त्योहारों के अवसर पर व्यंजनों की संख्या चौरासी तक पहुँच जाती है।

किंवदंती है कि केशरी वंश (४७३ से ५२० ईसवी) के ययाति के शासनकाल के दौरान भगवान जगन्नाथ राजा के सामने उपस्थित हुए और उन्हें शहर के सभी ब्राह्मणों के लिए एक पारंपरिक भोज आयोजित करने की आज्ञा दी। ब्राह्मणों ने कार्यक्रम स्थल पर पहुँचने पर राजा के इस दावे पर विश्वास करने से इनकार कर दिया कि यह भोजन वास्तव में ब्रह्मांड के भगवान द्वारा पवित्र किया गया है। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि उनके बीच से एक मूक ब्राह्मण को पहले भोजन करना चाहिए और अगर ऐसा करने पर वह चमत्कारिक रूप से ठीक हो जाता है तब राजा पर विश्वास किया जायेगा।

ब्राह्मण ने एक मुट्ठी प्रसाद निगल लिया और इसकी प्रशंसा में गीत गाने लगा!

“हे आत्ममुग्ध युगीन लोगों! आप वेदों और अन्य शास्त्रों के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं। जब मैं महाप्रसाद का आनंद लेता हूँ, तो मेरे परिजन भी इसका आनंद लेते हैं ! ”

तब से मंदिर की रसोई में हर दिन भोग तैयार किया जाता है। माना जाता है कि भोजन देवी बिमला (लक्ष्मी) द्वारा स्वयं तैयार किया गया है। प्रसाद को मिलने वाले आदर से लोगों का इससे गहरे प्रेम का पता चलता है। प्रत्येक भोजन से पहले सुअरा (रसोइए) अपने मुँह को बांध लेते हैं ताकि भोजन पर लार या श्वास ना गिरे, वे भोग के बड़े बरतनो को काँवर पर रखकर एक ही लाइन में चलते हैं, ताकि इसका तीर्थयात्री या आगंतुक द्वारा स्पर्श ना हो जाए। बिमला देवी, ब्राह्मणों और देवी काली को क्रमशः परोसने से पहले, इसे भजन और प्रार्थना के बीच, गर्भगृह के भीतर ले जाया जाता है।

परंपरागत रूप से, इस भोग को अतीक, कुडुआ या हांड़ी नामक बर्तनों में लकड़ी की आग पर पकाया जाता है। के.सी. मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘द कल्ट ऑफ़ जगन्नाथ' में कहा है कि भोग दो प्रकार के होते हैं, भोजन जैसे कि चावल और काले चने जिनको मंदिर की रसोई के अंदर पकाया जाता है, जिसे समखुडी कहा जाता है, और जिसे मंदिर परिसर के बाहर पकाया जाता है उसे निसमखुडी कहा जाता है, जिसमे आटा, गेहूँ या घी की अधिकांश खाद्य वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं। करेला, लहसुन, प्याज़ और पपीते जैसी कुछ सब्जियों का भोग में इस्तेमाल वर्जित है।

तीर्थयात्री प्रायः महाप्रसाद को उन लोगों के लिए घर ले जाते है जो भगवान के दर्शन के लिए पुरी नहीं आ सकते हैं, क्योंकि भोग के दर्शन को भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने का दूसरा सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है। यह भोग, भगवान के आशीर्वाद की भांति, किसी भी जाति, धर्म या लिंग के सदस्यों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।

पखाल / पोखालो

पोखालो ओड़िया लोगों का प्रिय व्यंजन है। तटीय राज्य में रात के खाने की मेजों पर इस व्यंजन को विभिन्न प्रकार से परोसा जाता है, परंतु अपने सबसे मूल रूप में पोखलो, काफी समय तक पानी में किण्वित किया गया चावल होता है। जब इस पानी (जिसे तुरानी कहा जाता है) को परोसा जाता है तब यह एक नमकीन- तीखा स्वाद उत्पन्न करता है जो चावल में जीरा, करी पत्ता या दही की अनुवृद्धि के संपूरक के रूप में कार्य करता है। एक ठंडा व्यंजन होने के नाते, पोखालो, गर्मी के दिनों में बहुत राहत प्रदान करता है। गर्मी बीतने के बाद इसे कभी-कभी ही खाया जाता है।

पोखालो को केवल उड़ीसा के लोग ही नहीं बल्कि उनके भगवान भी पसंद करते हैं। पुरी में भगवान जगन्नाथ को गर्मी के महीनों के दौरान दिन में तीन बार पोखालो परोसा जाता है। उनके मध्याह्न भोज के पोखालो को चमेली से सुगन्धित किया जाता है। पोखालो को शाम को दही, अदरक और जीरा, जबकि रात को शकरकंद, अदरक, जीरा, घी और चीनी के साथ परोसा जाता है।

इसी तरह के व्यंजन झारखंड (पानी भात), बंगाल (पंटा भात), असम (पोइता भात) और यहाँ तक कि पड़ोसी दक्षिण पूर्वी देशों में भी पसंद किए जाते हैं । २० मार्च पखाल दिबस या पखाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।